आईपीसी धारा 151 क्या है। | धारा 151 में सजा और जमानत।

 आईपीसी (IPC) धारा 151



दोस्तों क्या आप जानते है कि शांतिभंग की आशंका क्या होती है? भारतीय दंड संहिता में क्या यह एक अपराध है और अगर अपराध है तो कैसे इसको अपराध के श्रेणी में माना जायेगा | आज हम इसी को जानने  का प्रयास करेंगे | आपको आज IPC (आईपीसी) की धारा 151 क्या है यह कब और किन कंडीशन में अप्लाई होती है इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी इस पेज पर मिलेगी | इस IPC की धारा 151 में सजा और जमानत (BAIL) के क्या प्रावधान है, इन सब बातो पर भी विस्तार से चर्चा करेंगे |


धारा 151 का प्रयोग पुलिस जन सामान्य को नियंत्रित करने के दौरान सबसे ज्यादा करती है। धारा 151 के तहत पुलिस द्वारा गिरफ्तार आरोपी को थाने से ही जमानत का प्रावधान होता है

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 कभी-कभी इस धारा के तहत गांव के गांव मजिस्ट्रेट के सामने भेज दिए जाते हैं। इस धारा के तहत पुलिस द्वारा गिरफ्तार आरोपी को थाने से ही जमानत का प्रावधान होता है। यह एक ऐसा मनमाना प्रावधान है, जिसके तहत अपराध हुआ नहीं और पुलिस के मुताबिक ये कहा जाता है कि 'अपराध किया जा सकता था'। इस प्रावधान के चलते कभी भी, किसी को भी गिरफ्तार करके हवालात में बन्द कर देना पुलिस के बायें हाथ का खेल है। आजादी से पहले यह कानून अंग्रेजों द्वारा उनके विरुद्ध आवाज उठाने वाले भारतीयों को कुचलने के लिये बनाया गया था।



एसडीएम बाफना के अनुसार धारा 151 में पुलिस गलत इस्तागासा लगाती है, जबकि कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष आरोपी को तब ही प्रस्तुत किया जाना चाहिए जब आरोपी धारा 151 (2) में गिरफ्तार हुआ हो और आरोपी को 24 घंटे से अधिक पुलिस अभिरक्षा में रखना आवश्यक हो तो किसी विधि अथवा संहिता के उपबंधों के अधीन प्राधिकृत करना होगा, तब धारा 151, 107 व 116 में पुलिस कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समझ आरोपी को पेश कर सकती है।


वहीं 2010 में संशोधित हुए कानून के माध्यम से यह भी बताया कि धारा 151 में गिरफ्तार आरोपी को कार्यपालक मजिस्ट्रेट के पास भेजा जा रहा है। जहां से जेल भेज दिया जाता है। जबकि 151 में किसी भी आरोपी को जेल भेजना अवैधानिक तो है ही जेल संचालक को भी जेल में रखने का अधिकार नहीं है


यह धारा शांतिभंग की आशंका में इस्तेमाल की जाती है। यदि मारपीट के मामलों में चिकित्सीय परीक्षण में गंभीर प्रकृति की चोट या हथियार के इस्तेमाल की बात आती है तो सुसंगत धाराओं में मुकदमा दर्ज कर फिर से गिरफ्तारी होती है।


अक्सर आपने सुना होगा किसी व्यक्ति को 151 में पुलिस ने पकड़ लिया है या यूँ कहे कि किसी को 151 में पुलिस ने बंद कर दिया है, अब साधारण व्यक्ति इस बात को नहीं समझ पायेगा केवल वकील ही इसको समझ सकता है |


इसको आसान भाषा में समझने के लिए सबसे पहले यह जानना होगा कि धारा 151 किसी अपराध विशेष का नाम नहीं है बल्कि ये तो उस शक्ति का नाम है जो की अपराध होने से रोकने के लिए पुलिस अधिकारियों को प्रदान की गई है, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 151 संहिता को प्रदत्त एक निवारण के लिए एक टूल (यंत्र) या उपहार है जो दंड प्रक्रिया संहिता को समाज में विधि व्यवस्था बनाए रखने के लिए दिया गया है।


किसी भी बनायीं गई विधि की बात करें तो, जब भी कभी विधि गतिमान होती है तब इसके प्रक्रियात्मक यंत्र के हर एक कलपुर्जे का कुशलतापूर्वक कार्य करना बहुत ही आवश्यक होता है अन्यथा यह उस समाज के हित के लिए हानिकारक हो जाता है जिस समाज के हित के लिए विधियां बनाईं जातीं हैं ।



दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 151 में संज्ञेय अपराधों का किया जाना रोकने के लिए गिरफ्तारी के प्रावधान बताया गया है, इस धारा की उपधारा 1 में  यह बात स्पष्ट रूप से लिखी है कि यदि किसी पुलिस अधिकारी को किसी संज्ञेय अपराध किये जाने की परिकल्पना का पता है तो वह ऐसी परिकल्पना वाले व्यक्ति को बिना वारंट और बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के गिरफ्तार कर सकता है अगर उस पुलिस अधिकारी को यह लगता है कि उपरोक्त संज्ञेय अपराध को और किसी दूसरे तरीके से नहीं रोका जा सकता |



कहा लगाई जाती है धारा 151


◆दो पक्षों में मनमोटाव के दौरान,

◆चुनावी घोषणा के दौरान जब ये लगे कि हिंसा भड़ सकती है,

◆कहीं भी शांति व्यवस्था भंग करने के दौरान,

◆मारपीट के दैरान।


धारा 151 के अंतर्गत सजा और जमानत का प्रावधान



सामान्यतः धारा 151 के अनुसार जहाँ कोई व्यक्ति कोई ऐसे समूह में शामिल होता है, जिसमें पांच या पांच से अधिक लोग जुड़े हुए हों, और जिनका मुख्य उद्देश्य जन शांति को भंग करना होता है। जब कोई गैर क़ानूनी जन सभा किसी समाज के लोगों में अशांति फ़ैलाने की कोशिश करती है, तो वहाँ की पुलिस ऐसे सभी अपराधियों को जो किसी भी प्रकार से उस गैर क़ानूनी जन सभा से जुड़े हुए हैं, तो ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा 151, के अनुसार कारावास की सजा का प्रावधान दिया गया है, और जिसकी समय सीमा को 6 बर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और कारावास के साथ ही आर्थिक दंड का प्रावधान भी दिया गया है, यह आर्थिक दंड न्यायालय अपने विवेक से और अपराधी की हैसियत और उसके जुर्म की गहराई को देखकर निश्चित करती है। इस धारा के अंतर्गत आने वाले आरोपी को जमानत देने का भी प्रावधान दिया गया है, क्योंकि यह बहुत अधिक संगीन अपराध की श्रेणी में नहीं आता है, जिससे इस धारा के मामले में जमानत मिलने के अवसर और अधिक बढ़ जाते हैं। एक व्यक्ति जमानत लेने के लिए जमानत के सभी चरणों का पालन करते हुए अपनी जमानत प्राप्त कर सकता है।


धारा 151 के आरोपी को एक वकील की आवश्यकता क्यों होती है


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आमतौर पर भारतीय दंड संहिता के सभी मामलों से निपटने के लिए ही वकील की आवश्यकता होती है, क्योंकि इस संहिता में केवल आपराधिक कृत्यों के प्रावधानों और उनकी सजा का वर्गीकरण किया गया है। एक वकील ही उचित रूप से धारा 151, के अपराध से निपटने के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है, क्योंकि वकील को ऐसे मामलों से निपटने का अनुभव होता है, और उसे इस बात की जानकारी होती है, कि किस प्रकार से इस मामले के आरोपी की मदद की जाये। लेकिन इन मामलों में ध्यान देने की बात यह होती है, कि जिस वकील को हम धारा 151 के मामले से सुलझने के लिए नियुक्त कर रहे हैं, वह अपने क्षेत्र में निपुण वकील होना चाहिए, और उस वकील को इस प्रकार के मामलों से सुलझने का काफी अच्छा अनुभव हो, जिससे आपके केस को जीतने के अवसर और भी बढ़ सकते हैं।

नहीं होना चाहिए शक्ति का दुरुपयोग

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 151 स्वयं उन परिस्थितियों के लिए प्रावधान करती है, जिसमें उस धारा के तहत गिरफ्तारी की जा सकती है और उस अवधि के लिए एक सीमा भी रखी गयी है (24 घंटे) जिसके लिए किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता है। प्रावधान में ही दिशानिर्देश भी मौजूद हैं। जोगिंदर कुमार के मामले में और डी. के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य [1997] 1 SCC 416 के मामले में यह भी कहा गया है कि धारा 151 के अंतर्गत शक्ति का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है और दुरुपयोग के मामले में, संबंधित प्राधिकारी को पर्याप्त रूप से दंडित किया जाएगा।

अंत में, एक नागरिक के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के हित में और शायद अपने हित में एक पुलिस अधिकारी के लिए यह विवेकपूर्ण होगा कि प्रारंभिक जाँच के बाद, किसी उचित संतुष्टि के बिना कोई गिरफ़्तारी न की जाए। 


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